Mahesh Navami 2022: महेश नवमी ‘माहेश्वरी धर्म‘ में विश्वास करने वाले माहेश्वरी लोगों का प्रमुख पर्व है। माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति का पर्व ‘महेश नवमी’ हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान महेश के आशीर्वाद स्वरूप मानी गई है। माहेश्वरी वंशोत्पत्ति पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा अर्चना को समर्पित है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल माहेश्वरी समाज के 5155वें उत्पत्ति दिवस, 09 जून दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। धर्मग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। माहेश्वरी का अर्थ है (महेश यानी शंकर और वारि यानी समुदाय या वंश) यानी भगवान महेश का वंश (परिवार), जिस पर भगवान शिव की कृपा है। इसलिए माहेश्वरी समाज के लोग, शिव परिवार को अपना कुलदेवता मानते हैं।
महेश नवमी के दिन भगवान शिव की विधि पूर्वक पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आइए जानते हैं महेश नवमी 2022 पर्व तिथि व मुहूर्त, क्यों कहलाता हैं माहेश्वरी समाज, महेश नवमी की पूजा विधि, महेश नवमी विशेष मंत्र, माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कथा, महेश नवमी का धार्मिक और सामाजिक महत्व इत्यादि के बारे में।
Mahesh Navami 2022 तिथि
- महेश नवमी 2022 तिथि: 09 जून 2022, गुरुवार
- ज्येष्ठ माह शुक्ल नवमी तिथि 2022 का आरंभ: 08 जून दिन बुधवार को सुबह 08 बजकर 30 मिनट से
- ज्येष्ठ शुक्ल नवमी तिथि 2022 का समापन: 09 जून गुरुवार को सुबह 08 बजकर 21 मिनट तक
उदयातिथि के आधार पर महेश नवमी 09 जून को मनाई जाएगी।
Mahesh Navami 2022 शुभ मुहूर्त
महेश नवमी की पूजा आप प्रात:काल से कर सकते हैं क्योंकि सुबह से ही रवि योग बना हुआ है। 09 जून को रवि योग पूरे दिन है। यह मांगलिक कार्यों के लिए शुभ योग है। इस दिन आप सूर्य देव की कृपा भी प्राप्त कर सकते हैं।
महेश नवमी के दिन का अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक है। इस दिन का राहुकाल दोपहर में 02 बजकर 05 मिनट से दोपहर 03 बजकर 49 मिनट तक है।
महेश नवमी पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- महेश नवमी के दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करें। भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की भी पूजा करें। शिव पावर्ती दोनों के पूजन से खुशहाल जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
- पूजा के दौरान शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करें।
- शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, सफेद फूल, फल, चंदन, अक्षत्, शक्कर, भस्म, गंगाजल, गाय का दूध आदि अर्पित करें।
- इस दिन भगवान शिव को कमल पुष्प अर्पित करे।
- शिवलिंग पर भस्म से त्रिपुंड लगाएं, जो त्याग व वैराग्य का सूचक है।
- इसके अलावा त्रिशूल का विशिष्ट पूजन करें।
- महेश नवमी के दिन भगवान शिव की आराधना में डमरू बजाएं।
- शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए।
- शिव मंत्रों का जाप करें। उसके पश्चात शिव जी की आरती करें।
- पूजा के बाद शिव जी से अपने समाज और परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना करें।
महेश नवमी विशेष मंत्र
महेश नवमी पर महादेव के विशेष मंत्रों के जाप से उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। महेश नवमी पर रुद्राक्ष की माला से ऐसे विशेष मंत्र का जप करने से सुख, धन, संपत्ति में बढ़ोत्तरी और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मंत्रों का जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना शुभ माना जाता है।
- ऊं नम: शिवाय
- ऊं पार्वतीपतये नम:
- ऊं ह्रीं ह्रौं नम: शिवाय
- ऊं नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्रां मेधा प्रयच्छ स्वाहा
- नमो नीलकण्ठाय
कैसे मनाए महेश नवमी?
माहेश्वरी समाज में महेश नवमी का उत्सव बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस पावन पर्व को हर्षउल्लास से मनाना प्रत्येक माहेश्वरी का कर्त्तव्य है और समाज उत्थान व एकता के लिए अत्यंत आवश्यक भी है।
माहेश्वरी ‘मेसरी‘ समाज के लिए महेश नवमी का दिन बहुत धार्मिक महत्व का होता है, जिसका आयोजन उमंग और उत्साह के साथ होता है। इस उत्सव की तैयारी कुछ दिन पूर्व ही शुरू हो जाती है, जिनमें धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शोभायात्रा निकाली जाती हैं। भगवान महेश की महाआरती होती है, ‘जय महेश‘ के जयकारों की गूंज के साथ चल समारोह निकाले जाते हैं। महेश नवमी के दिन भगवान शंकर और पार्वती की विशेष आराधना की जाती है।
माहेश्वरी सभा ने समाजजनों से अपील की कि घर पर भी भगवान महेश की स्तुति करें। घरों में रंगोली सजाएं। भगवान महेश की सुबह 10:00 बजे पूजन, आराधना तथा आरती कर खुशहाली की कामना करें।
शाम 7:30 बजे घरों के बाहर नौ दीपक घी व कपूर के जलाएं, किसी भी जरूरतमंद की सहायता करें। समाज के हर घर में सामूहिक रूप से महेश वंदना गाए। सेवा, सहयोग व संकल्प के साथ भगवान महेश की आराधना करते हुए हर पल को यादगार बनाएं।
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माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। शिकार के दौरान वे ऋषियों के श्राप से ग्रसित हुए। तब इस दिन भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर उनके पूर्वजों की रक्षा की व उन्हें हिंसा छोड़कर अहिंसा का मार्ग बतलाया था।
खंडेला नगर में सूर्यवंशी राजा खड्गल सेन राज्य करते थे, जो धर्मावतार और प्रजाप्रेमी थे। इनके राज्य में सारी प्रजा सुख और शांती से रहती थी। राजा का कोई पुत्र नहीं था इसलिए राजा ने पुत्रेस्ठी यज्ञ कराया। ऋषियों ने आशीवाद दिया और सचेत किया की तुम्हारा पुत्र बहुत पराक्रमी और चक्रवर्ती होगा, पर उसे 16 साल की उम्र तक उत्तर दिशा की ओर जाने न देना, अन्यथा आपकी अकाल मृत्यु होगी।
कुछ समय बाद रानी चम्पावती के पुत्र जन्म हुआ, राजा ने पुत्र जन्म उत्सव बहुत ही हर्ष उल्लास से मनाया। ज्योतिषियों ने उसका नाम सुजानसेन रखा। वह बहुत ही प्रखर बुद्धि का व समझदार निकला। तथासमय सुजानसेन का विवाह चन्द्रावती के साथ हुआ।
एक दिन राजकुवर सुजानसेन 72 उमरावो को लेकर हठपूर्वक शिकार करने उत्तर दिशा की ओर जंगल में गया। सूर्य कुंड के पास 6 ऋषि यज्ञ कर रहे थे, वेद ध्वनि बोल रहे थे ,यह देख वह आग बबुला हो गया। उसने उमरावों को यज्ञ विध्वंस करने का आदेश दिया।इससे ऋषि भी क्रोध में आ गए और उन्होंने उन सभी को श्राप दे दिया की सब पत्थर बन जाओ। श्राप देते ही राजकुवर सहित 72 उमराव पत्थर बन गए। जब यह समाचार राजा खड्गल सेन ने सुना तो उन्होने अपने प्राण तज दिए।
राजकुवर की कुवरानी चन्द्रावती 72 उमरावों की स्त्रियों को साथ लेकर उन ऋषियो की शरण में गई और श्राप वापस लेने की विनती करी। तब ऋषियो ने उन्हें निकट ही एक गुफा में जाकर भगवान महेश का अष्टाक्षर मंत्र “ॐ नमो महेश्वराय” का जाप करते हुए भगवान गोरीशंकर की आराधना करने को कहा। राजकुवरानी सारी स्त्रियों सहित गुफा में गई और तपस्या में लीन हो गई।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान महेश, माता पार्वती के साथ वहा आये, तो राजकुवरानी ने पार्वतीजी के चरणों में प्रणाम किया। माँ पार्वती ने ‘सौभाग्यवती रहने‘ का आशीर्वाद दिया, इस पर राजकुवरानी ने कहा हमारे पति तो ऋषियों के श्राप से पत्थरवत हो गए है अतः आप इनका श्राप मोचन करो। देवी महेश्वरी ने भगवान महेश से प्रार्थना की, और भगवान ने उन्हें चेतन में ला दिया।
क्यों कहलाता हैं माहेश्वरी समाज?
ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वती ने ऋषियों के शाप के कारण पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को शापमुक्त किया। चेतन अवस्था में आते ही सभी ने महेश-पार्वती का वंदन किया और अपने अपराध पर क्षमा याचना की। इसपर भगवान महेश ने कहा की- अपने क्षत्रियत्व के मद में तुमने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। तुमसे यज्ञ में बाधा डालने का पाप हुआ है, इसके प्रायश्चित के लिए अपने-अपने हथियारों को लेकर सूर्यकुंड में स्नान करो। ऐसा करते ही सभी उमरावों के हथियार पानी में गल गए। उसी दिन से वो जगह लोहा गल (लोहागर) (सीकर के पास, राजस्थान) के नाम से प्रसिद्द हो गया।
स्नान करने के उपरान्त भगवान महेश ने सभी को कहा की- सूर्यकुंड में स्नान करने से तुम्हारे सभी पापों का प्रायश्चित हो गया है तथा तुम्हारा क्षत्रितत्व एवं पूर्व कर्म भी नष्ट हो गये है। यह तुम्हारा नया जीवन है इसलिए अब तुम्हारा नया वंश चलेगा। तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी यानि तुम वंश (धर्म) से “माहेश्वरी’’ और वर्ण से वैश्य कहलाओगे। तुम हमारी (महेश-पार्वती) संतान की तरह माने जाओगे। तुम दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होंगे।
तब ऋषियों ने आकर भगवान से अनुग्रह किया की प्रभु इन्होने हमारे यज्ञ को विध्वंस किया और आपने इन्हें श्राप से मुक्त कर दिया। इस पर भगवान महेश ने कहा – आजसे आप इनके (माहेश्वरीयों के) गुरु है। ये तुम्हे गुरु मानेंगे, और तुम ‘गुरुमहाराज‘ के नाम से जाने जाओगे।
फिर भगवान महेश ने सुजान कुवर को कहा की तुम इनकी वंशावली रखो, ये तुम्हे अपना जागा मानेंगे। तुम इनके वंश की जानकारी रखोंगे, विवाह-संबन्ध जोड़ने में मदद करोगे और ये हर समय, यथा शक्ति द्रव्य देकर तुम्हारी मदद करेंगे।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार जो 72 उमराव थे उनके नाम पर एक-एक जाती बनी जो 72 खाप (गोत्र) कहलाई। फिर एक-एक खाप में कई नख हो गए जो काम के कारण गाव व बुजुर्गो के नाम बन गए है। इस तरह माहेश्वरी समाज का नाम पड़ा। माहेश्वरी समाज के 72 उपनामों या गोत्र का संबंध भी इसी प्रसंग से है।
महादेव ने अपनी कृपा से इस समाज को अपना नाम भी दिया इसलिए यह समुदाय माहेश्वरी नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव की आज्ञा से ही माहेश्वरी समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य समाज को अपनाया, तब से ही माहेश्वरी समाज व्यापारिक समुदाय के रूप में पहचाना जाता है।
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महेश नवमी का धार्मिक और सामाजिक महत्व
भगवान शंकर ने क्षत्रिय राजपूतों को शिकार छोड़कर व्यापार या वैश्य कर्म अपनाने की आज्ञा दी। यानि हिंसा को छोड़कर अहिंसा के साथ कर्म का मार्ग बताया। इससे महेश नवमी उत्सव यही संदेश देता है कि मानव को यथासंभव हर प्रकार की हिंसा का त्याग कर जगत् कल्याण, परोपकार और स्वार्थ से परे होकर कर्म करना चाहिए।
माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। आज तकरीबन भारत के हर राज्य, हर शहर में माहेश्वरी बसे हुए है और अपने अच्छे व्यवहार के लिए पहचाने जाते है।
!! .. जय महेश .. !!
Mahesh Navami 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं !!
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इस आलेख में दी गई Mahesh Navami 2022 की जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं।