Bhaumvati Amavasya 2019: हिंदू धर्म में आषाढ़ मास की अमावस्या, भौमवती अमावस्या का बहुत महत्व माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव हैं, इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मंगलवार को पड़ने वाली आषाढ़ी अमावस्या को भौमवती अमावस्या (हलहारिणी अमावस्या) कहा जाता है। ग्रह नक्षत्रों के अनुसार इस बार भौमवती अमावस्या पर धन योग रहेगा।
हिंदू धर्म के अनुसार अमावस्या पर स्नान, दान, श्राद्ध व व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। आषाढ़ मास की अमावस्या के दिन किसान अपने हल सहित सभी खेती में उपयोगी यंत्रों की पूजन करके हरी-भरी फसल रहने की प्रार्थना करते हैं, इसी कारण इसे हलहरिणी अमावस्या भी कहा जाता है। इसके अगले दिन यानी 3 जुलाई से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होगी, इस दिनों मां दुर्गा की गुप्त रूप से आराधना की जाएगी।
इस बार भौमवती अमावस्या 2 जुलाई मंगलवार को है। संयोगवस इस बार भौमवती अमावस्या और साल का दूसरा पूर्ण सूर्य ग्रहण एक ही दिन पर पड़ रहे हैं।
शास्त्रों की मानें तो हर मास में आने वाली अमावस्या तिथि काफी अहम होती है, अमावस्या को पर्व तिथि मानी गई है। ऐसी मान्यता है कि अमावस्या के दिन प्रेतात्माएं सबसे ज्यादा सक्रिय होती हैं। इसलिए चौदस और अमावस्या के दिन बुरे कामों और नकारात्मक विचारों को दूर रखने में ही भलाई है। इस समयकाल में धार्मिक कार्यों, पूजा-पाठ इत्यादी पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
इस दिन पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ तर्पण, स्नान-दान इत्यादि करना बेहद जरूरी होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में जानें भौमवती अमावस्या की पूजा विधि क्या है, शुभ मुहूर्त और हिंदू धर्म में भौमवती अमावस्या का इतना महत्व क्यों है और इस दिन क्या करना चाहिए।
Bhaumvati Amavasya 2019 Date and Timings
अमावस्या प्रारंभ: 1 जुलाई को मध्यरात्रि बाद 3.05 बजे से।
अमावस्या समाप्त: 2 जुलाई को मध्यरात्रि में 00.46 बजे तक।
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क्यों खास है आषाढ़ अमावस्या
वैसे तो हर माह की अमावस्या तिथि पितृकर्म के लिए श्रेष्ठ होती है, लेकिन मान्यता है कि आषाढ़ माह की अमावस्या का कुछ खास महत्व है।आषाढ़ का महीना पूजा-पाठ के लिहाज से भी खास होता है। लोक मान्यता है कि अमावस्या के दिन हमारे पितर अपने परिजनों से अन्न-जल ग्रहण करने आते हैं। इसलिए आषाढ़ी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों के तट पर बड़ी संख्या में पितृकर्म संपन्न किए जाते हैं। पितरों की शांति के लिए नदी तट पर बड़े-बड़े यज्ञ, विधि विधान से पूजा, अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं, इसी कारण आषाढ़ अमावस्या को पितृकर्म अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
क्यों महत्वपूर्ण है भौमवती अमावस्या
भौमवती अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए पूजा-अर्चना की जाती है। पितरों के निमित्त पिंडदान और तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होकर परिजनों को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन कुंडली संबंधित दोष जैसे- पितृदोष, कालसर्प दोष, नागदोष आदि की शांति के उपाय भी किए जाते हैं। सच्चे भाव व श्रद्धा से पूजा करने से मन मे शांति और घर को लाभ मिलता है।
भौमवती अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करके जरूरतमंदों को दान देने से एक हजार गौदान के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन पीपल के पेड़ की परिक्रमा कर, पीपल के पेड़ और भगवान विष्णु का पूजन करने से धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, कुरुक्षेत्र के ब्रह्म सरोवर आदि तीर्थस्थलों पर जाकर स्नानादि करने से भी पुण्य प्राप्ति होती है। पितरों की शांति के भौमवती अमावस्या पर लोग व्रत भी रखते हैं।
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भौमवती अमावस्या पर क्या करना चाहिए?
- पितरों के शांति के लिए विधि विधान से निमित्त तर्पण, पिंडदान आदि क्रिया पंडित जी की सलाह से करवाना चाहिए।
- जो लोग भूल या कारणवश पितरों की शांति के लिए पूर्ण विधि से पूजा नहीं करवा पाते हैं, या कोई त्रुटि रह गई हो तो उन्हें भौमवती अमावस्या पर पितरों के लिए पूजा कराने से त्रुटि दोष से मुक्ति मिल जाती है।
- भौमवती अमावस्या के दिन गरीबों, जरूरतमंदों और भूखे लोगों को भोजन कराने से पुण्य की प्राप्ती होती है, साथ ही त्रुटि दोष भी दूर हो जाते हैं और पितर प्रसन्न होकर आर्शीवाद देते हैं।
- भौमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करने से सुख-समृद्धि, आयु और आरोग्य प्राप्त होता है।
- भौमवती अमावस्या पर पितरों के मोक्ष की प्राप्ती के लिए गंगा नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा नदी में उनके नाम की डुबकी लगाने से परिवार की सुख-समृद्धि बनी रहेगी।
- यदि व्यक्ति शनि ग्रह या मंगल ग्रह से पीड़ित हो तो आषाढ़ अमावस्या के दिन हनुमान मंदिर में चमेली के तेल, सिंदूर और चोला चढ़ाना चाहिए। इस दिन शनि की साढ़ेसाती की शांति के लिए शनि के मंत्रों का जाप करना चाहिए। हनुमान जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
- आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ और भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। साथ ही पीपल के पेड़ की परिक्रमा भी लगानी चाहिए।
- इस दिन गाय, कुत्ते, कौए, भिखारी, कोढ़ी आदि को भोजन करवाना चाहिए। जन्म कुंडली में पितृदोष हो तो उपरोक्त कर्म करने से पितृदोष की शांति होती है।




