Devshayani Ekadashi 2020: जानिए चातुर्मास और देवशयनी एकादशी (आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी, हरि शयनी एकादशी) व्रत कथा, महत्‍व: देवशयनी एकादशी 01 जुलाई को है, भगवान विष्‍णु योग निद्रा में चले जाते हैं फिर चार महीने बाद देवप्रबोधनी एकादशी के दिन उठते हैं. जानिए चातुर्मास में क्या करें, क्या ना करें?
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Devshayani Ekadashi: जानिए चातुर्मास और देवशयनी एकादशी व्रत कथा, महत्‍व

Devshayani Ekadashi 2019: भगवान विष्णु को समर्पित आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी, देवशयनी एकादशी 12 जुलाई, शुक्रवार को है। देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी और हरि शयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवशयनी एकादशी का हिन्‍दू धर्म में विशेष महत्‍व है। मान्‍यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर चार महीने बाद देवप्रबोधनी एकादशी के दिन उठते हैं।

इस बार देवशयनी एकादशी के दिन 3 दुर्लभ शुभ योग बन रहे हैं – सर्वार्थ सिद्धि शुभ योग, शुक्रवार का दिन (भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी को समर्पित दिन) और रवि योग है। ऐसे में भगवान विष्णु की आराधना, पूजा सवोत्तम फल देने वाली होती है। रवि योग में अशुभ योग के सभी दुष्प्रभाव खत्म हो जाते हैं।

भगवान के सोने की वजह से सभी शुभ व  मांगलिक कार्य जैसे कि विवाह, जनेऊ, गृह प्रवेश, नामकरण व उपनयन संस्‍कार जैसे 16 संस्कार नहीं होते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। चातुर्मास में भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।

इसके बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी (शुक्रवार, 8 नवंबर) पर भगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होती है और फिर सभी शुभ कार्यों का आरंभ होता है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है।

Devshayani Ekadashi 2019 Date

इस बार देवशयनी एकादशी 12 जुलाई को है.

एकादशी तिथि प्रारंभ: 12 जुलाई 2019 को रात 1 बजकर 02 मिनट से.
एकादशी तिथि समाप्त13 जुलाई 2019 को रात 12 बजकर 31 मिनट तक.
पारण का समय: 13 जुलाई 2019 को सुबह 06 बजकर 30 मिनट से सुबह 8 बजकर 33 मिनट तक

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देवशयनी एकादशी की पूजा विधि

  • इस दिन सुबह जल्‍दी उठकर, घर की साफ-सफाई और नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं। स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र  धारण करें।
  • इस दिन पवित्र नदियों में स्‍नान करने का भी विशेष महत्‍व है। अगर ऐसा न कर पाएं तो गंगाजल से घर में छिड़काव करना चाहिए।
  • फिर घर के मंदिर में भगवान विष्‍णु की मूर्ति स्‍थापित कर षोडशोपचार से उनकी पूजा करें और भगवान विष्णु को पीतांबर, पीले फूल और पीली चंदन से सजाएं।
  • फल, फूल, मेवे तथा मिठाई अर्पित कर स्तुति करें।
  • पूजा के बाद व्रत कथा सुनें।
  • धूप, दीप जलाकर आरती कर के प्रसाद बांटें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
  • विष्णु सहस्रनाम तथा भगवान विष्णु के मंत्रों ‘ॐ नमो नारायण’, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, ‘ॐ विष्णवे नम:’ इत्यादि का जप करना चाहिए।

देवशयनी एकादशी कथा

भागवत महापुराण के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर राक्षस मारा गया था। उस दिन से भगवान नारायण चार महीने तक क्षीर समुद्र में सोते हैं।

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वामन पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। राजा बलि के आधिपत्‍य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्‍णु के पास मदद मांगने पहुंचे। देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। वामन भगवान ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान के रूप में मांगी। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में पूरे स्वर्ग को ढक लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं, तो राजा बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए तीसरा पग अपने सिर पर रखने को कहा। भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्‍न होकर उन्होंने राजा बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और उससे वरदान मांगने को कहा।

बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया। भगवान को बलि के बंधन में बंधा देखते हुए माता लक्ष्मी ने बलि को भाई बनाया और भगवान को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। पाताल से विदा लेते वक्‍त भगवान विष्‍णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को योगनिद्रा माना जाता है।

माना जाता है तब से भगवान विष्णु का अनुसरण करते हुए तीनो देव 4-4 महीने में पाताल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक करते हैं।

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देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी के नाम से ही स्पष्ट है कि देव के शयन का समय। देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थान एकादशी) तक श्री हरि विष्‍णु आराम करते हैं। यही वजह है कि भगवान की गैर-मौजूदगी में किसी भी तरह के मांगलिक कार्यों विवाह संस्कार, संस्कार, गृह प्रवेश आदि की मनाही होती है। हालांकि पूजन, अनुष्ठान, मरम्मत करवाए गए घर में गृह प्रवेश, वाहन व आभूषण खरीदी जैसे काम किए जा सकते हैं।

इस एकादशी को सौभाग्यदायिनी एकादशी कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन व्रत या उपवास रखने से जाने-अनजाने में किए गए पाप खत्म हो जाते हैं। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आने वाले चार महीने जिसमें सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक का महीना आता है उसमें खान-पान और व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए। दरअसल इन 4 महीनो में व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है इससे अलावा भोजन और जल में Bacteria की तादाद भी बढ़ जाती है।

बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है।

चातुर्मास में क्या ना करें?

1. गुड़ नहीं खाना चाहिए।
2. तेल का त्याग करें।
3. देवशयनी एकादशी के दिन से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पलंग पर शयन की मनाही होती है।
4. शहद, मूली, परवल और बैंगन खाने से परहेज करें।
5. लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन बिल्कुल भी ना खाएं।
6. झूठ नहीं बोलना चाहिए।
7. मांस और मदिरा का सेवन न करें।
8. दही-भात का सेवन भी वर्जित माना गया है।
9. जुआ नहीं खेलना चाहिए।
10. किसी की चुगली नहीं करना चाहिए।
11. चोरी जैसा पाप कर्म नहीं करना चाहिए।

चातुर्मास में क्या करें?

चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। चातुर्मास में भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।

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Devshayani Ekadashi 2019 Vrat की हार्दिक शुभकामनाएं !!

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(इस आलेख में दी गई Devshayani Ekadashi 2019 की जानकारियां धार्मिक आस्थाओं, हिंदू पांचांग और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं।)

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