Magh Pradosh Vrat 2020: हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला व्रत है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल (दिन और रात के मिलन) को प्रदोष काल कहा जाता है। इस वर्ष 2020 का दूसरा प्रदोष व्रत, माघ महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 22 जनवरी दिन बुधवार को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का बहुत अधिक महत्व है।
माघ माह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अपना अलग ही महत्व होता है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत होने के कारण इसे बुध प्रदोष या सौम्य्वारा प्रदोष व्रत कहा जाता है। बुध प्रदोष व्रत के दिन विधि विधान से भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा करने से सभी कष्टों का नाश होता है, आरोग्य रहने का आशीर्वाद भी मिलता हैं और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
यदि प्रदोष व्रत सोमवार को होता तो इसे सोम प्रदोष कहा जाता। यदि यह मंगलवार को होता तो इसे भौम प्रदोष और शनिवार के दिन होता तो शनि प्रदोष कहा जाता। प्रदोष व्रत का प्रभाव दिन के हिसाब से अलग अलग होता है।
वर्ष 2020 का पहला प्रदोष व्रत 08 जनवरी को पड़ा था। हिन्दू कैलेंडर (पंचांग) के अनुसार, प्रदोष व्रत हर माह की त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है। हर मास में प्रदोष व्रत दो बार आता है- एक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को। माना जाता है कि इस दिन संध्या के समय विधिवत तरीके से भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा अर्चना करने से विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और कई गुना लाभ प्राप्त होता है। जानें बुध प्रदोष व्रत पूजा विधि, पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत का लाभ और व्रत से जुड़ी मान्यताए-
Magh Pradosh Vrat 2020 Shubh Muhurat
माघ मास की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ – 22 जनवरी दिन बुधवार को तड़के 01 बजकर 44 मिनट से
त्रयोेदशी तिथि समाप्त – अगले दिन 23 जनवरी दिन गुरुवार को तड़के 01 बजकर 48 मिनट तक पर।
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Magh Pradosh Vrat 2020 Puja Time
प्रदोष व्रत में शाम की पूजा का विशेष महत्व होता है।
22 जनवरी को शाम 05 बजकर 51 मिनट से रात 08 बजकर 32 मिनट तक अच्छा मुहूर्त हैं।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
त्रयोदशी तिथि को प्रभात के समय दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करने के बाद स्वच्छ सफेद रंग के वस्त्र धारण कर, भगवान शिव को स्मरण करके व्रत का संकल्प करें। प्रदोष पूजा शाम के समय होती है। इस व्रत में काले वस्त्र न पहनें। दिन भर शुद्ध आचरण के साथ निराहार रहकर व्रत रखें और भगवान शिव और मां पार्वती का ध्यान करते रहें। सूर्यास्त के बाद दुबारा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर, दिए गए मुहूर्त में देवों के देव महादेव, माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करें।
पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पूजन सामग्री (धूप, दीप, घी, सफेद पुष्प, सफेद फूलों की माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाइयां, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, जल से भरा हुआ कलश, कर्पुर, आरती के लए थाली, बेल-पत्र, धतुरा, भांग, हवन सामग्री, आम की लकड़ी) लेकर बैठ जाएं। इसके बाद भगवान शिव शंकर को गंगाजल से अभिषेक करें। भगवान को सफेद पुष्प, अक्षत्, भांग, धतूरा, सफेद चंदन, गाय का दूध, ऋतु फल, आंकड़े का फूल, और धूप आदि नैवेद्य अर्पित करें। फिर “ऊँ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करें। शिव चालीसा का पाठ करें और पूजन के पश्चात् घी के दीये से भगवान शिव की आरती करें। बुध प्रदोष की कथा सुनें और सुनायें। पूजा संपन्न होने के बाद पूजा का प्रसाद सभी को वितरित करें।
इस दिन रात्रि को भी भगवान का ध्यान और पूजन करते रहना चाहिए। सुबह स्नान के बाद ही व्रत खोलें।
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बुध प्रदोष व्रत का लाभ
बुध प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव खुश होते हैं। इस व्रत के करने से भगवान शिव, भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है। एक वर्ष तक लगातार यह व्रत करने से महादेव मनोकामनाओं की पूर्ति करके व्रती के सभी पाप, कष्टों, दोषों और संकटों को हर लेते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
माघ प्रदोष व्रत के दिन चंद्रमा की भी पूजा होती है, जिससे चंद्रमा के दोष दूर होते हैं। जब चंद्रमा पीड़ित हो जाता है तो व्यक्ति को मानसिक तनाव की स्थिति पैदा कर देता है, व्यक्ति सही फैसले नहीं कर पाता है। प्रदोष व्रत रखने से शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है और मानसिक तनाव दूर हो जाती है।
बुध प्रदोष व्रत को बेहद कल्याणकारी और शत्रुओं का दमन करने वाला व्रत माना गया है। माना जाता है कि त्रयोदशी व्रत करने वाले को सौ गाय दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। प्रदोष व्रत का महत्व वार के मुताबिक अलग-अलग होता है।
प्रदोष व्रत से जुड़ी मान्यता
ऐसी मान्यता है कि प्रदोष के समय भगवान शिव शंकर कैलाश पर्वत के रजत भवन में होते हैं और नृत्य कर रहे होते हैं और इस दौरान देवता भगवान के गुणों का स्तवन करते हैं। मान्यता है कि चन्द्र देव को क्षय रोग था। भगवान शिव ने त्रयोदशी के दिन दोष का निवारण कर उन्हें पुन: जीवन प्रदान किया।
यह भी मान्यता है कि यदि यह व्रत सोमवार के दिन पड़ता है और जो भी इस व्रत को करता है उसकी हर इच्छा फलित होती है। यदि यह व्रत मंगलवार को है तो व्रत करने वाले को रोगों से मुक्ति मिलती है, यदि यह व्रत बुधवार को है तो सभी प्रकार की कामनाएँ पूर्ण होती हैं, यदि यह व्रत गुरुवार को है तो व्रत करने वाले के शत्रु का नाश होता है और सौभाग्य में वृद्धि होती है, शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भ्रुगुवारा प्रदोष कहा जाता है। जीवन में सौभाग्य की वृद्धि हेतु यह प्रदोष किया जाता है। यदि यह व्रत शनिवार को पड़ रहा है तो पुत्र की प्राप्ति होती है और यदि यह व्रत रविवार को पड़ रहा है तो व्रत करने वाला सदा निरोग रहता है।
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Magh Pradosh Vrat 2020 की हार्दिक शुभकामनाएं !!
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(इस आलेख में दी गई Magh Pradosh Vrat 2020 की जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)