Mokshada Ekadashi 2020, इस व्रत से मिलता है मोक्ष, जानिए मोक्षदा एकादशी व्रत तिथि, मोक्षदायिनी एकादशी पूजा-विधि, मोहनाशक एकादशी कथा, शुद्धा एकादशी महत्व, गीता जयंती 2020
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Mokshada Ekadashi 2018: मोक्षदा एकादशी व्रत कथा, पूजा-विधि और महत्व

Mokshada Ekadashi 2018: मार्गशीर्ष मास में शुक्ल एकादशी को रखा जाता है मोक्षदा एकादशी का व्रत। यह व्रत करने से मनुष्यों के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और साथ ही व्रती और उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए इसका नाम मोक्षदा एकादशी है। ऐसा कहा जाता है कि मोक्षदा एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। यही वजह है मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष एकादशी के दिन ही गीता जयंती भी मनाई जाती है।

मान्यता है कि इस एकादशी (Ekadashi) के दिन व्रत रखने से पूर्वजों के लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।

हिंदू धर्म में माना जाता है कि मोक्ष प्राप्त किए बिना मनुष्य को बार-बार इस संसार में आना पड़ता है। मोक्ष की इच्छा रखने वाले प्राणियों के लिए मोक्षदा एकादशी व्रत रखने की सलाह दी गई है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है।

Mokshada Ekadashi 2018 Date

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक चंद्र मार्गशीर्ष के महीने में शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है। Mokshada Ekadashi 2018, 18 दिसंबर और 19 दिसम्बर को है। पंचांग के अनुसार, 18 दिसंबर को एकादशी तिथि का आरंभ सूर्योदय के बाद हो रहा है। इसलिए इस तिथि को लेकर लोगों के बीच संशय की स्थिति बनी हुई है। लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस तिथि में सूर्योदय होता है, उस दिन उसी तिथि का सूर्यास्त माना जाता है। फिर भले ही दिन में किसी समय तिथि बदल रही हो।

एकादशी 18 दिसंबर 2018 को प्रातः 07:57am से शुरू,
19 दिसंबर 2018 को प्रातः 07:35 am पर समाप्त
व्रत पारण (समाप्त) करने का शुभ मुहूर्त : सूर्यास्त से पहले

सनातन धर्म में सूर्योदय की ही तिथि ली जाती है। अतः 19 दिसम्बर को ही एकादशी का व्रत रखना श्रेयष्कर रहेगा। स्मार्त व्रत 18 तारीख को रखेंगे लेकिन वैष्णव 19 को ही मोक्षदायिनी एकादशी तिथि का व्रत-पूजन करेंगे।

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मोक्षदा एकादशी व्रत की पूजा विधि 

ॐ नमः भगवते वासुदेवाय कृष्णाय क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।

  1. मोक्षदा एकादशी के लिए दशमी की रात्रि के प्रारंभ से द्वादशी की सुबह तक व्रत रखें।
  2. पूजा करने से पहले और स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूरे घर में गंगाजल छिड़कें।
  3. प्रातः उठकर स्नान इत्यादि से निवृत होकर मंदिर को गंगा जल से पवित्र कर कुश के आसन पर बैठकर पूजा प्रारम्भ करें। धूप, दीप और तुलसी से भगवान विष्णु के साथ कृष्ण जी की भी पूजा करें।
  4. भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी जी की मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाकर श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें तत्पश्चात श्री सूक्त का पाठ करें। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।
  5.  व्रत का संकप्ल लें और व्रत कथा पढ़ें। पूजा के दौरान भगवान को फलाहार, माखन-मिश्री का भोग लगाएं। फिर आरती कर प्रसाद बांटें।
  6. इस दिन फलाहार व्रत रखना चाहिए। घर में सात्विक वातावरण हो। परिवार के साथ उपवास को खोलना चाहिए।
  7. आज अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी तथा वृद्ध लोग व्रत ना करे। इस दिन भगवान का संकीर्तन करें। अन्न का दान करें तथा गरीबों में कम्बल वितरण करें।
  8. इस दिन गीता पढ़ना बहुत पुण्यदायी है। गीता का उपदेश दूसरों से कहना तथा सुनना और सुनाना श्री कृष्ण भक्ति प्रदान करता है। इस दिन लोगों में गीता बांटने से पापों का नाश होता है।
  9. इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन गीता अवश्य पढ़ें।
  10. रात्रि में भगवान श्रीहरि का भजन-कीर्तन करें।
  11. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें।

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

मोक्षदा एकादशी की प्रचलित कथा के अनुसार चंपा नगरी में चारों वेदों के ज्ञाता राजा वैखानस रहा करते थे। वे बहुत ही प्रतापी और धार्मिक थे। उनकी प्रजा भी खुशहाल थी। लेकिन एक दिन राजा ने सपना देखा कि उनके पिता नरक की यातनाएं झेल रहे हैं। ये सपना देख राजा अचानक उठ गए और सपने के बारे में पत्नी को बताया। इस पर पत्नी ने राजा को गुरु के आश्रम जाने की सलाह दी।

राजा आश्रम गए और वहां कई सिद्ध गुरुओं से मिले। सभी गुरु तपस्या में लीन थे, उन्हें देख राजा गुरुओं के समीप जाकर बैठ गए। राजा को देख पर्वत मुनि मुस्कुराए और आने का कारण पूछा। राजा ने बहुत ही दुखी मन से अपने सपने के बारे में उन्हें बताया। इस पर पर्वत मुनि राजा के सिर पर हाथ रखकर बोले, ‘तुम एक पुण्य आत्मा हो, जो अपने पिता के दुख से इतने दुखी हो। तुम्हारे पिता को उनके कर्मों का फल मिल रहा है।  उन्होंने तुम्हारी माता को, सौतेली माता के कारण बहुत यातनाएं दीं। इसी कारण वे पाप के भागी बने और अब नरक भोग रहे हैं।

इस बात को जान राजा ने पर्वत मुनि से इस समस्या का हल पूछा। इस पर मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी के व्रत का पालन करने को कहा। राजा ने विधि पूर्वक व्रत किया और व्रत का पुण्य अपने पिता को अर्पण कर दिया। व्रत के प्रभाव से राजा के सभी कष्ट दूर हो गए और उनके पिता को नरक से मुक्ति मिल गई।

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मोक्षदा एकादशी का महत् 

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मोक्षदा एकादशी का व्रत बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-पाठ और कीर्तन करने से पाप का नाश होता है। मोक्षदा एकादशी का धार्मिक महत्व पितरों को मोक्ष दिलानेवाली एकादशी के रूप में भी है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रत करनेवाले व्यक्ति के साथ ही उसके पितरों के लिए भी मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। इसीलिए इस दिन पापों को नष्ट करने और पितरों के लिए मोक्ष के द्वार खोलने के लिए श्री हरि की तुलसी की मंजरी और धूप-दीप से पूजा की जाती है।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-पाठ और कीर्तन करने से आपके जीवन की बाधाएं दूर होती है, प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को मानसिक और भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए इस एकादशी का महत्व और लाभ ना सिर्फ अपने लिए बल्कि पूरे परिवार और पूर्वजों के लिए भी है।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।

Mokshada Ekadashi 2018 की हार्दिक शुभकामनाएं !!

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(Image Courtesy: Hindustan)

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