Amla Navami 2018: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती हैं। इसे बहुत से लोग अक्षय नवमी भी कहते हैं। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस बार (Amla Navami 2018) ये पर्व 17 नवंबर, शनिवार को है। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का पर्व है। मान्यता है कि इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और उनकी मंगलकामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है।
मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिव जी का निवास होता है, यही वजह है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। ऐसा करने पर इंसान की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। एेसी मान्यता भी है कि इसी दिन से सतयुग का प्रारंभ हुआ था। आंवला नवमी को स्वर्ण, गांव तथा वस्त्र आदि दान देने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप से भी छुटकारा मिलता है।
Amla Navami 2018 | आंवला नवमी पूजन विधि
- महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके शुद्ध मन से किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं।
- आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर उन्मुख हो कर पूजन करना चाहिए।
- उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें।
- आंवले की जड़ में दूध की धारा डालें।
- पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है।
- कपूर से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करें।
- साथ ही परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करके, ब्राह्मण को भोजन करा कर दक्षिणा प्रदान करें।
- इसके बाद वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार सहित भोजन किया जाता है। भोजन में आंवला अवश्य होना चाहिए।
Amla Navami 2018 पूजा का सर्वोत्म मुहूर्त प्रात: 6:45 से 11:54 के बीच है।
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आंवला की उत्पत्ति
मान्यता के अनुसार एक बार ब्रह्माजी कमल पुष्प में बैठकर परब्रह्मा की तपस्या में लीन थे। तपस्या के करते-करते ब्रम्हा जी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे थे। ब्रह्माजी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई। इस तरह आंवला वृक्ष सृष्टि में आया ।
आंवला नवमी की कथा
पौराणिक कथाआें के अनुसार काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए बच्चे की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही।
एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। इस पाप के दंड स्वरूप उसे लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।
इस पर वैश्य क्रोध करते हुए कहा कि गौवध, ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। अब तुझे अपने पाप का प्रायश्चित करना होगा, इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है।
वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई और प्रार्थना की। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। जिस पर महिला रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा और इस व्रत को करने परंपरा प्रारंभ हो गर्इ।
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आखिर क्यों आंवला नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे खाते है खाना?
आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे खाना बनाकर ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए इसके बाद खुद खाना चाहिए। भोजन के समय मुंह पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन के समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ होता है। कहा जाता है कि आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और खाना खाने से कष्ट दूर हो जाते हैं।
आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा माता लक्ष्मी ने शुरू की थी। एक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आई। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है? तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है।
तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है।
आंवला नवमी पर करें ये उपाय
1) आंवला नवमी वाले दिन पेड़ के नीचे बैठकर भगवान शिव, विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजा करें, ऐसा करने से घर में पैसों की कमी दूर हो सकती है।
2) आंवला नवमी पर चंदन व हल्दी मिलाकर आंवले की जड़ में डालें, ऐसा करने से आपका रुका हुआ पैसा जल्दी मिल सकता है।
3) आंवला नवमी वाले दिन आंवले के पेड़ पर हल्दी का स्वस्तिक बनाएं, ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी।
4) आंवला नवमी के दिन घर में आंवले का पौधा लगाएं, ऐसा करने से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है।
5) आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन बनाएं और ब्राह्म्णों को खिलाएं ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
6) गरीबों और ब्राह्मणों को आंवला दान करें, कहा जाता है कि ऐसा करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
आंवला का महत्व
- आचार्य चरक के मुताबिक आंवला एक अमृत फल है, जो कई रोगों का नाश करने में सफल है।
- आंवला में आयरन और विटामिन सी भरपूर होता है। जो कि इसे उबालने के बाद भी पूर्ण रूप से बना रहता है।
- आंवले का जूस रोजाना पीने से पाचन शक्ति दुरुस्त रहती है।
- त्वचा में चमक आती है, त्वचा के रोगों में लाभ मिलता है।
- आंवला खाने से बालों की चमक बढ़ती है।
- यह आपके शरीर में कोषाणुओं के निर्माण को बढ़ाता है, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहता है।
आंवला नवमी का महत्व
हमारे धर्म में हर उस वृक्ष को जिसमें बहुत अधिक औषधीय गुण हों, उनकी किसी विशेष तिथि पर पूजे जाने की परंपरा बनाई गई है। आंवला नवमी की परंपरा भी इसी का हिस्सा है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंवला प्रकृति का दिया हुआ ऐसा तोहफा है, जिससे कई सारी बीमारियों का नाश हो सकता है।
हम आंवले के महत्व को समझें व उसका संरक्षण करें। इसी भावना के साथ हमारे बुजूर्गों ने आंवला नवमी का त्योहार मनाने की परंपरा बनाई।
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(इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
(Image Courtesy: Patrika)