Dasha Mata Vrat 2025: दशा माता का व्रत चैत्र (चेत) महीने के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन किया जाता है। दशा माता का व्रत, घर-परिवार के बिगड़े ग्रहों की दशा या परिस्थिति अनुकूल बनी रहे, ऐसी कामना के साथ किया जाता है। दशा माता यानि माँ भगवती की पूजा और व्रत करके महिलायें गले में डोरा पहनती है ताकि परिवार में सुख–समृद्धि, शांति, सौभाग्य और धन संपत्ति बनी रहे। इसे साँपदा माता का डोरा भी कहते हैं।
होली के दस दिन बाद यह व्रत आता है। हिंदू पंचांग के अनुसार Dasha Mata Vrat 2025, 24 मार्च दिन सोमवार को है। व्रत मे महिलाएं दशा माता और पीपल की पूजा कर सौभाग्य, ऐश्वर्य, सुख–शांति और आरोग्य की कामना करती हैं। महिलाएं शुभ मुहूर्त मे पीला धागा गले में धारण करती हैं। दशा माता की कृपा से परिवार की बिगड़ी हुई दशा ठीक हो जाती है।
दशा ख़राब हो तो अनेक प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, पूरी कोशिश करने पर भी कोई काम पूरा नहीं होता। ऐसे ही संकटों से उबारने वाला है दशा माता का व्रत। इस व्रत को जो व्यक्ति भक्ति–भाव से करता है, उसके घर से दु:ख और दरिद्रता दूर हो जाती है, और दसों दिशाओं से आपके घर में धन-धान्य सुख शांति समृद्धि की वृद्धि होती है।
कब है दशा माता पूजन 2025?
पंचांग के अनुसार, इस बार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि 24 मार्च, सोमवार की सुबह 05 बजकर 38 मिनिट से शुरू होगी, जो 25 मार्च, मंगलवार की सुबह 05 बजकर 05 मिनिट तक रहेगी। चूंकि दशमी तिथि का सूर्योदय 24 मार्च की सुबह होगा, इसलिए इसी दिन दशा माता का पूजन किया जाएगा। इस दिन परिघ और शिव नाम के 2 शुभ योग दिन रहेंगे।
Dasha Mata Vrat 2025: पूजा का शुभ मुहूर्त
– सुबह 06 बजकर 30 मिनिट से 08 बजकर 01 मिनिट तक।
– सुबह 09 बजकर 31 मिनिट से 11 बजकर 02 मिनिट तक
– दोपहर 12 बजकर 08 मिनिट से 12 बजकर 57 मिनिट तक। (अभिजीत मुहूर्त)
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दशा माता पूजन विधि | Dasha Mata Pujan Vidhi
दशा माता पूजा सामग्री – दशा माता पूजा सामग्री में रोली (कुंकुम), मौली, सुपारी, चावल, दीप, नैवेद्य, धुप, काजल, गेहूँ, धूप, दीप और मेहंदी आदि का इंतजाम कर लें। साथ में सफेद धागा लें और उसमे गांठ बना लें। फिर उसे हल्दी में रंग लें। इस धागे को दशमाता की बेल कहते हैं।
दशा माता का व्रत करने वाली सुहागिन महिलाएं शादी का जोड़ा या नये लाल वस्त्र पहनती है और पूरा श्रृंगार करके यह पूजा करती हैं। इस पावन दिन शुभ मुहूर्त में, कच्चे सूत के 10 तार के 10 गांठ वाले डोर से पीपल की पूजा करती हैं। विधि-विधान से इस पूजा के पश्चात् व्रती महिलाएं नल–दमयंती की कथा सुनती हैं।
- सुबह स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेते हैं ।
- इस व्रत मे दशा माता की मूरत या चित्र की पूजा की जाती है। मूर्ति/चित्र नहीं हो तो नागरबेल के पान के पत्ते (पूजा में काम आने वाला डंडी और नोक वाला पत्ता) पर चन्दन से दशा माता बनाकर पूजा की जा सकती है।
- दशा माता के पूजन में त्रिवेणी (पीपल, बरगद और नीम) की पूजा भी की जाती है। इन पेड़ों को देवताओं का स्वरूप माना जाता है।
- दशा माता के पास कुंकुम, काजल और मेहंदी की दस-दस बिंदी लगाते हैं। भोग के रूप में नैवेद्य लापसी, चावल आदि चढ़ाया जाता है और सूत का धागा बांधकर सुख सौभाग्य व मंगल की कामना करते हुए त्रिवेणी वृक्षों की परिक्रमा की जाती है। त्रिवेणी वृक्षों को चुनरी ओढ़ाई जाती है।
- दस दस गेहूँ की दस ढ़ेरी पास में सजाई जाती है। लडडू, हलवे, लापसी या मीठे रोठ आदि का भोग दस ढेरियों के पास रखा जाता है। दस गाँठों का डोरा पूजा में रखा जाता है।
- दशा माता और दस गाँठ वाले डोरे का पूजन अक्षत, पुष्प आदि से करते हैं।
- धूप दीप जलाते हैं। पिछले साल का डोरा भी पास में रखते हैं।
- इसके पश्चात दशा माता की आरती गाई जाती है।
- इसके बाद नल दमयंती वाली दशा माता की कथा कहते और सुनते हैं। कहानी पीपल के पेड़ की पूजा के बाद भी कही सुनी जा सकती है। कुछ लोग दस कहानियाँ सुनते हैं।
- पूजा करने और कथा सुनने के बाद महिलाएं दशा माता का पूजित नया डोरे को गले में बांधती हैं। इस धागे को व्रती महिलाएं पूरे साल धारण करती हैं।
- इसके बाद गेहूं, भोग और पुराना डोरा लेकर पीपल के पेड़ के पास जाते हैं। गेहूं और पिछले साल का डोरा पीपल की जड़ के पास मिट्टी में दबा दिया जाता है या पीपल में बांधा जात है। पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है।
- कहीं कहीं दशा माता के पूजन के बाद पथवारी पूजन भी किया जाता है।
- पीपल के पेड़ की थोड़ी सी छाल खुरच कर गेहूं के दानों के साथ घर लाते हैं। इसे साफ कपड़े में लपेट कर तिजोरी या अलमारी में रखते हैं। पीपल की छाल को धन का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है की पीपल की छाल इस प्रकार घर में रखने से सुख समृद्धि बनी रहती है।
- व्रत के सकल्प की पूर्ति के रूप में दस पूरियां, दस सिक्के और दस चम्मच हलवा ब्राह्मणी या घर की बुजुर्ग महिला के पैर छूकर उन्हें दिया जाता है।
दशामाता की पूजा विधिपूर्वक करने से माता की कृपा सदैव बनी रहती है। घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
दशा माता व्रत के नियम
- दशामाता का व्रत जीवन में जब तक शरीर साथ दे, तब तक किया जाता है। इस व्रत को बीच में नहीं छोड़ सकते। ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
- दशा माता की पूजा पीपल के पेड़ की छाँव में करना शुभ माना जाता है।
- घर में इस व्रत के दिन विशेष रूप से साफ–सफाई की जाती है और अनावश्यक अटाला, कचरा, टूटा-फूटा सामान बाहर फेंक दें। साथ ही सफाई से जुड़े समान यानी झाड़ू आदि खरीदने की परंपरा है।
- इस दिन घर का पैसा खर्च नहीं करना चाहिए। दशामाता पूजा के पूरे दिन बाजार से कोई वस्तु ना खरीदें। यथासंभव जरूरत की वस्तुएं एक दिन पूर्व ही खरीदकर रख लें।
- दशामाता पूजन के दिन किसी को पैसा उधार भी ना दें। इस दिन अपने घर की कोई वस्तु भी किसी को नहीं देना चाहिए और ना ही किसी से कोई वस्तु या पैसा मांगना चाहिए।
- दशामाता व्रत करने वाली महिलाएं दिन भर में मात्र एक बार अन्न का सेवन करती हैं।
- इस व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है।
मान्यता है कि दशामाता व्रत को विधि-विधान, सच्चे मन, भक्ति भाव से करने पर, एक साल के भीतर जीवन से जुड़े दु:ख और समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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दशा माता का डोरा कब खोलते हैं?
दशा माता का डोरा साल भर गले में पहना जाता है। लेकिन यदि दशा माता का डोरा साल भर नहीं पहन सकते हैं तो वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में किसी अच्छे दिन खोलकर रखा जा सकता है। उस दिन व्रत करना चाहिए और सांपदा माता की कहानी सुननी चाहिए।
इतना भी नहीं पहनना चाहें तो जिस दिन पहनते हैं उसी दिन डोरे को रात के समय उतार कर पूजा के स्थान पर रख दें और अगले वर्ष पूजा के बाद पीपल की जड़ में दबा दें।
|| जय दशा माता की – Dasha Mata Vrat 2025||
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(इस आलेख में दी गई Dasha Mata Vrat 2025 की जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं।)