Sheetla Pujan 2025: होली के बाद चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी/अष्टमी तिथि को शीतला माता पूजन का पर्व मनाया जाता हैं। इस साल Sheetala Ashtami 2025, 22 मार्च शनिवार के दिन हैं। कुछ लोग शीतला सप्तमी (21 मार्च) भी पूजते हैं। इस दिन शीतला माता का पूजन किया जाता है और बसौड़ा का प्रसाद लगाया जाता है। शीतला माता बच्चों को कई बीमारियों से रक्षा करती हैं।
शीतला सप्तमी/अष्टमी को बसौड़ा, बास्योड़ा, बसियौरा, बसोरा, बासौड़ा पर्व भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी की पूजा करने के बाद शीतला माता की कथा सुनने से माता शीतला प्रसन्न होती हैं और पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। शीतला माता को अत्यंत शीतल माना जाता है।
इस पर्व में एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है। शीतला पूजन के दिन घर में अग्नि जलाना निषिद्ध होता है, इसलिए लोग अपने लिए एक दिन पहले ही खाना बना लेते हैं। शीतला मां की पूजा में प्रसाद के रूप में ठंडा व बासी भोजन चढ़ाया जाता है और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती हैं।
घरों में कई तरह के पकवान- हलवा, पूरी, केर सांगरी की सब्जी, दही बड़ा, पकौड़ी, पुए रबड़ी, राबरी, चावल, सोगरा, दही, राब, इत्यादि बनाए जाते हैं। अगले दिन की सुबह महिलाएं इन चीजों का भोग शीतला माता को लगाकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन परिवार के सभी सदस्य भी ठंडे पानी से स्नान करते है और पहले से बनाया हुवा बासी भोजन प्रसाद के रूप मे ग्रहण करते हैं।
आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है शीतला पूजन का पर्व, शीतला माता के स्वरूप के प्रतीकात्मक अर्थ, शीतला पूजन मुहूर्त, शीतला माता पूजन विधि और महत्व के बारे में-
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शीतला माता के स्वरूप के प्रतीकात्मक अर्थ
शीतला माता का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है। इसके अनुसार देवी शीतला को दुर्गा और पार्वती का अवतार माना गया है और इन्हें रोगों से उपचार की शक्ति प्राप्त है। ठंडा भोजन खाने के पीछे भी एक धार्मिक मान्यता भी है कि माता शीतला को शीतल (ठंडा) व्यंजन ओर जल पसंद है। इसलिए माता को ठंडा (बासी) व्यंजन का ही भोग लगाया जाता है, इससे शीतला माता प्रसन्न होती है।
शीतला माता के स्वरूप के प्रतीकात्मक अर्थ हैं। शीतला माता यानी पर्यावरण के शुद्धिकरण की देवी, जो सृष्टि को विषाणुओं से बचाने का संदेश देती है।माता को साफ-सफाई, स्वस्थता और शीतलता का प्रतीक माना जाता है।
उनके वस्त्रों का रंग लाल होता है जो खतरे और सतर्कता का प्रतीक माना जाता है। शीतला माता की चारों भुजाओं में झाड़ू, घड़ा, सूप और कटोरा सुशोभित होते हैं जो सफाई का प्रतीक चिन्ह हैं। उनकी सवारी गधा है, जो उन्हें गंदे स्थानों की ओर ले जाती है। झाड़ू उस स्थान की सफाई करने के लिए तो सूप कंकड़-पत्थर को अलग करने के लिए है। घड़े में भरा गंगा जल उस स्थान को विषाणु मुक्त करने के लिए प्रतीक के रूप में उनके एक हाथ में होता है।
Sheetla Pujan 2025 Date and मुहूर्त
बास्योड़ा लोकपर्व है, यह लोकमान्यता के अनुसार ही मनाया जाता है। ढूंढाड़ में यह लोकपर्व ठंडे वार को मनाया जाता है। जबकि मारवाड़ में वहां लोकमान्यता होली के बाद अष्टमी तिथि को ही बास्योड़ा मनाया जाता है। ग्रामीण इलाको में ठंडा वार देखकर शीतला माता का पूजन कर ठन्डे का भोग लगाया जाता हैं।
शीतला सप्तमी 2025 तिथि प्रारम्भ – 21 मार्च वार शुक्रवार रात 2 बजकर 44 मिनट पर
शीतला सप्तमी 2025 तिथि की समाप्ति – 22 मार्च वार शनिवार को सुबह 4 बजकर 22 मिनट पर
शीतला सप्तमी 2025 पर पूजा के लिए शुभ मुहूर्त – 21 मार्च को सुबह 6 बजकर 24 मिनट से शाम 6 बजकर 30 मिनट तक
शीतला सप्तमी पर रवि योग का संयोग बन रहा है। इस योग में माता शीतला की पूजा आराधना करने से व्यक्ति को आरोग्य प्रदान होता है।
शीतला अष्टमी 2025 तिथि प्रारम्भ – 22 मार्च शनिवार सुबह 4 बजकर 30 मिनट पर
शीतला अष्टमी तिथि 2025 की समाप्ति – 23 मार्च रविवार को सुबह 5 बजकर 23 पर
उदया तिथि के अनुसार अष्टमी तिथि का शीतला माता का व्रत और पूजा 22 मार्च शनिवार को की जाएगी।
शीतला माता पूजन विधि
शीतला माता की पूजा के दिन घर पर चूल्हा नहीं जलता। माता के प्रसाद के लिए व परिवार जनों के भोजन के लिए, एक दिन पहले ही सब कुछ पकाया जाता है। माता को सफाई काफी पसंद है इसलिए घर पर सब कुछ साफ-सुथरा होना बेहद आवश्यक है।
शीतला माता की पूजा के एक दिन पहले हलवा, खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी, सब्जी आदि बनाई जाती हैं। कुल्हड़ में मोठ, बाजरा भिगो दें। इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए। माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। पूजा के एक दिन पहले रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करें। इसके बाद चूल्हा नहीं जलाना चाहिए।
- प्रात: काल ठंडे जल से स्नान करके शीतला माता, औरई माता, अचपड़ा जी, पंथवारी जी की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए।
- स्नान और पूजा के वक्त ‘हृं श्रीं शीतलायै नमः‘ का उच्चारण करते रहें।
- स्नान करने के बाद इस मंत्र से संकल्प लें-
‘मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन…
पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये’ - एक थाली थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे, भीगा मोठ, बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें।
- एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा (मोली), वस्त्र, एक माला व सिक्का रखें।
- शीतल जल व दूध का कलश भर ले।
- पूजा के लिए साफ सुथरे और सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए।
- इसके बाद मन्दिर में जाकर पूजा करें। यदि शीतला माता घर पर हो तो, घर पर पूजा कर सकते हैं।
- सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएं। दूध व घी का भोग लगाए।
- रोली और हल्दी से टीका करें। काजल, मेहंदी, लच्छा, वस्त्र अर्पित करें।
- माता को पूर्व रात्रि को बनाया गया बासी भोजन (खाजा, दही, राबड़ी, चावल, हलवा, पूरी, गुलगुले आदि) का भोग लगाए।
- पूजन सामग्री अर्पित करें।
- बिना नमक का आटा पानी से गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें। यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता है।
- हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना करें – हे माता, मान लेना और शीली ठंडी रहना।
- आरती या गीत गा कर मां की अर्चना करें।
- अंत में वापस जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता है, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता है। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है पॉजिटिव एनर्जी आती है।
- पंथवारी माता जी का ध्यान कर उनको भी ऐसे ही पूजे।
- साथ ही शीतला माता की कथा सुनें।
इस प्रकार शीतला माता की पूजा संपन्न होती है। ठंडे व्यंजन सपरिवार मिलजुल कर खाएं और शीतला माता पर्व का आनंद उठाएं।
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क्यों मनाया जाता है शीतला पूजन का पर्व?
शीतला पूजन का पर्व राजस्थान में ही नहीं पूरे उतरी भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
हिंदू धर्म की सबसे अहम बात यही है कि यह वैज्ञानिक और आध्यात्मिक है। शीतला पूजन का पर्व ऋतु परिवर्तन (शीत ऋतु के खत्म होने और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत) का संकेत देती है, जिसके कारण संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है। गर्मी के मौसम में चेचक, बुखार और हैजा जैसे संक्रामक रोग अधिक फैलते हैं। इन्हीं संक्रामक रोगों से बचाव के लिए शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
शीतला माता को चेचक की देवी माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि को स्वस्थ व रोगमुक्त रखने का दायित्व शीतला माता को दिया था। सफाई की प्रतीक, अरोग्यता देने वाली शीतला माता शीतलता यानी ज्वर, ताप या अग्नि उत्पन्न करने वाले रोगों से मुक्त करती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता की पूजा करने से चिकन पॉक्स यानी माता, खसरा, फोड़े, नेत्र रोग नहीं होते है। माता इन रोगों से रक्षा करती है।
मान्यता है कि शीतला माता की पूजा करने से बच्चों की सेहत अच्छी बनी रहती है। उनके आर्शीवाद से दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गंधयुक्त फोड़े, शीतला की फुंसियां, शीतला जनित दोष और नेत्रों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं। शीतला माता की पूजा से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा भी मिलती है।
यही वजह है कि लोग गर्मी के प्रकोप से बचने और संक्रामक रोगों से मुक्त रहने के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं।
|| जय शीतला माता की – Sheetla Pujan 2025 ||
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(इस आलेख में दी गई Sheetla Pujan 2025 की जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)




