Papmochani Ekadashi 2021 date, पापमोचनी एकादशी पूजन विधि, शुभ मुहूर्त, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारस व्रत कथा और महत्व, क्यों किया जाता हैं पापमोचनी एकादशी व्रत?
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Paapmochani Ekadashi 2021: क्यों किया जाता हैं पापमोचनी एकादशी व्रत? जानिए पापमोचनी एकादशी पूजन विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और महत्व

Paapmochani Ekadashi 2021: चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारस को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी होली और चैत्र नवरात्रि के बीच मे आती है जो की बहुत ही पुण्यदायी होती है। इस बार Paapmochani Ekadashi, 07 अप्रैल, दिन बुधवार को है। हिन्दू शास्त्रों में भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। बुधवार और एकादशी का योग होने से विष्णुजी के साथ ही गणेशजी की भी विधिवत पूजा करनी चाहिए।

धार्मिक मान्यता के अनुसार पापमोचनी एकादशी व्रत करने से व्रती के समस्त प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष का द्वार खुल जाता है। सर्व पापमोचनी एकादशी का शास्त्रों का बहुत बड़ा महत्व बताया गया हैं। पुराण ग्रंथों के अनुसार अगर कोई इंसान जाने-अनजाने में किए गये अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है तो उसके लिये पापमोचनी एकादशी ही सबसे बेहतर दिन होता है।

इसके अलावा भी इस दिन उपवास रखने के साथ श्रद्धा पूर्वक व्रत करने से जिस चीज की कामना की जाती हैं, वह मनोकामना पूरी हो जाती हैं। इसे करने से धन प्राप्‍त‍ि भी होती है और शरीर आरोग्‍य रहता है।

आइए जानते हैं क्‍या है पापमोचनी एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्‍व और कथा के बारें में।

Paapmochani Ekadashi 2021 Date व शुभ मुहूर्त

एकादशी आरंभ: 07 अप्रैल 2021, दिन बुधवार को प्रातः 2 बजकर 9 मिनट से।
एकादशी समाप्त: 08 अप्रैल 2021, दिन गुरुवार को प्रात: 2 बजकर 28 मिनट तक।

पापमोचनी एकादशी 2021 व्रत का पारण: 08 अप्रैल 2021 दिन गुरुवार को दोपहर 01 बजकर 39 मिनट बजे से शाम 04 बजकर 11 मिनट तक। पारण से मतलब व्रत को खोलने से है।

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पापमोचनी एकादशी पूजा विधि

व्रत रखने वाले को दशमी तिथि को एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए और भगवान का ध्यान करना चाहिए।

एकादशी के दिन संकल्प लेकर, भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा कर व्रत रखा जाता है। व्रत वाले दिन प्रात:काल सभी कामों से निवृत्त होकर सूर्य उदय से पहले स्नान करें। स्‍नान के बाद सूर्य देव, केले और पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं। इसके बाद भक्तिभाव से भगवान श्री हरी और महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करें। घी का दीपक जलाएं और भगवान् विष्णु को पीले फूल अर्पित करें।

पूजा में फल-फूल, गंगाजल, वस्त्र, धूप दीप और प्रसाद आदि चीजें देवी-देवताओं को चढ़ाएं। भोग लगाएं। विष्णुजी को तुलसी के पत्तों के साथ प्रसाद चढ़ाना चाहिए। धूप-दीप जलाकर भगवान की आरती करें।

गणेशजी को दूर्वा की 21 गांठ चढ़ाएं और श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप 108 बार करें। गणेशजी की पूजा गजानंद के रूप में की जाती है। इसीलिए किसी हाथी को गन्ना खिलाएं। गणेशजी के साथ ही रिद्धि-सिद्धि की भी पूजा करें। इससे घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।

किसी विष्णु-लक्ष्मी मंदिर में केले और मौसमी फल अर्पित करें। विष्णुजी को पीले वस्त्र चढ़ाएं।

जाने-अनजाने में जो भी आपसे पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। इस दौरान ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय‘ मंत्र का जाप निरंतर करते रहें। पूजा के पश्‍चात भगवान विष्‍णु के सामने बैठकर श्रीमद्भागवत का पाठ करें। चाहें तो श्री हरि के मंत्रॐ हरये नमः” का जाप भी कर सकते हैं। इस दिन बहुत से लोग व्रत रखने के साथ भगवान सत्यनारायण की कथा और विष्णु सहस्त्रनाम पाठ भी करते हैं।

एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। साथ ही भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें।

द्वादशी तिथि के प्रात:काल में स्नान कर, भगवान विष्णु की विधिवत पूजा और कथा करनी चाहिए। उसके बाद ब्राह्माणों को भोजन कराकर यथासंभव दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इन सभी कामों को संपन्न करने के बाद और द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले ही व्रती को व्रत खोलना चाहिए। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

व्रत कथा के अनुसार राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने-अनजाने पाप कर्म करता है, उससे कैसे मुक्त हो सकता है? राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे।

इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नज़र ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नज़र अप्सरा पर गयी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। तप में विलीन मेधावी ऋषि ने जब अप्सरा को देखा तो वह उस पर मन्त्रमुग्ध हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर मंजुघोषा के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे।

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काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव भक्ति के मार्ग से हट गए और उन्हें स्वयं पर ग्लानि होने लगी। उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर मेधावी ऋषि ने मंजुधोषा अप्सरा को पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया।

मेधावी इस पूरे प्रकरण से बहुत लज्जित हो गए थे, भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था। श्राप से दुखी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए ऋषि से प्रार्थना करने लगी।

अप्सरा की याचना से द्रवित हो मेधावी ऋषि ने उसे विधि सहित चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। अप्सरा ने विधि-विधान से चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और सुन्दर रूप प्राप्त कर स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी। मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया, जिससे उनका पाप नष्ट हो गया और र तप बल पुन: प्राप्त किया।

तभी से मान्यता है कि इस व्रत से व्यक्ति के सभी पापों का प्रभाव खत्म होता है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। विष्णुजी की कृपा मिलती है।

पापमोचिनी एकादशी व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार पापमोचनी एकादशी व्रत करने से भक्तों को बड़े से बड़े यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत बहुत पुण्यदायी है। शास्त्रों में बताया गया है कि पापमोचिनी एकादशी की इस कथा को पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है।

पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से ब्रह्म ह्त्या, सोने (सुवर्ण) चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप वाले भी पापमुक्त हो जाते हैं। इस एकादशी तिथि का बड़ा ही धार्मिक महत्व है और पौराणिक शास्त्रों में इसका वर्णन मिलता है।

नाम के मुताबिक इस एकादशी पर व्रत और पूजा करने से तमाम तरह के पाप और तकलीफों से छुटकारा मिलता है। साथ ही इस दिन अन्न और जलदान करने से कई गुना पुण्य मिलता है।

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Paapmochani Ekadashi 2021 की हार्दिक शुभकामनाएं !!

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(इस आलेख में दी गई Paapmochani Ekadashi 2021 की जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)

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