Suraj Rot Vrat Ki Kahani: सूरज रोट का व्रत होली तथा गणगौर के व्रत के बीच आने वाले रविवार को किया जाता है। सूरज रोट के व्रत में सूरज भगवान का पूजन किया जाता है। जों कोई इस सूरज रोटो रविवार का व्रत विधि विधान से करता हैं वह अपने जीवन में सभी सुखों को प्राप्त करता हैं।
गणगौर पूजन करने वाली बालिकाओं एवं महिलाओं को सूरज रोट का व्रत रखना चाहिए। पूजा करने के बाद सूरज भगवान व विनायक महाराज की कथा सुनी जाती हैं। भोजन में रोट खाते है जिसे झूठा नहीं छोड़ते। इस दिन नमक नहीं लिया जाता है। व्रत खोलने के लिए सूर्य छिपने से पहले भोजन किया जाता है।
सूरज रोट व्रत के पूजन की विधि व सामग्री, रोट बनाने की विधि तथा सूरज रोट व्रत का उद्यापन करने का तरीका, ये सब जानने के लिए हमारे सूरज रोट व्रत आलेख को पूरा पढ़िए। सूरज रोट व्रत के पूजन के बाद आखे (गेँहू के कुछ दाने) हाथ में लेकर सूर्य भगवान की व गणेश जी की कहानी कहें या सुने।
सूरज रोट के व्रत वाली कहानी
सूरज भगवान की कहानी सूरज रोट के व्रत के समय कही और सुनी जाती है। इससे व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। रविवार के व्रत में भी सूर्य भगवान की कहानी सुनते हैं। सूरज रोट के व्रत वाली सूर्य भगवान की कथा इस प्रकार है –
सूरज रोट व्रत की कहानी (Suraj Rot Vrat Ki Kahani)
किसी गाँव में एक माँ और उसकी बेटी दोनों सूरज जी का व्रत किया करती थी। एक बार सूरज रविवार के व्रत वाले दिन माँ ने बेटी से कहा, “मैं किसी आवश्यक कार्य से बाहर जा रही हूँ तू दो रोट बना कर रख लेना। एक छोटा रोट बेटी के लिए और एक बड़ा रोट मेरे लिए बनाना जो हम पूरा खा सकें, क्योंकि रोट को झूठा नहीं छोड़ते। रोट के आटे में नमक मत डालना, यह अलूना होता है।”
माँ चली गयी और बेटी रोट बनाने लगी। तभी सूरज भगवान एक साधु बाबा का वेष बनाकर वहाँ आये और भिक्षा मांगने लगे। लड़की ने कहा, “मेरी माँ का रोट तो बन गया है पर मेरा रोट बनेगा उसमे से आपको दूंगी।”
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बाबा ने कहा जो रोट बन चुका है उसी में से अभी दे दो, नहीं तो मैं जा रहा हूँ। लड़की ने माँ के रोट में से टुकड़ा तोड़कर दे दिया। जब माँ वापस आई तो बहुत नाराज हुई और बोली – “धीय बाई धीय दे, रोटा मायली कोर दे, म्हारो दे पण सारो दे” (हे लड़की, मेरी रोटी का टुकड़ा दे दिया, मेरी रोटी मुझे साबुत दे)। वह लड़की को मारने लगी। बेटी मार से बचने के लिए वहां से डर कर जंगल में भाग गई और बड़ के पेड़ पर चढ़कर बैठ गई।
सूरज भगवान ने सोचा, बेचारी लड़की को मेरे कारण घर से निकलना पड़ा, इसीलिए इसकी रक्षा मुझे ही करनी पड़ेगी। सूरज भगवान रोज उसके लिये चूरमे का एक लडडू और एक लोटा पानी भेज देते थे। लड़की मजे से खा कर वहां ही बैठी रहती।
एक दिन एक राजा शिकार करते हुए उधर से निकला, थकान मिटाने के लिए उसी पेड़ के नीचे आराम करने रुका। राजा ने अपने सेवक से कहा – “प्यास से जान निकली जा रही है, चुल्लू भर पानी मिल जाता तो प्राण बच जाते।” पेड़ पर बैठी लड़की ने यह सुना तो उसने चुल्लू भर पानी डाल दिया। राजा ने पानी पी लिया।
राजा ने कहा – “अरे सेवक, आधी जान तो बच गयी। थोड़ा पानी और मिल जाये तो आधी जान और बच जाएगी।” यह सुनकर लड़की ने फिर एक चुल्लू पानी डाल दिया। राजा ने पी लिया। राजा को आश्चर्य हुआ।
उसने सेवक से कहा – “ऊपर अवश्य कोई है। तू ऊपर चढ़ और देख कौन है।” सेवक ऊपर चढ़ा तो उसे लड़की मिली। लड़की ने सेवक से कहा – “भैया, तुम ये स्वादिष्ट लडडू खा लो और पानी पी लो पर राजा को मेरे बारे में मत बताना। कह देना कि ऊपर कोई नहीं है। पता नहीं राजा मेरे साथ कैसा व्यवहार करेगा?”
सेवक भूख प्यास से परेशान था। उसने लडडू खाया, पानी पीया और नीचे जाकर राजा से कह दिया कि ऊपर कोई नहीं है। राजा ने सेवक से कहा – “तू ऊपर गया तब तो थका हुआ था और आया तो तरोताजा दिख रहा है। नहाया और खाया हुआ मनुष्य छिपता नहीं है। मुझे संशय हो रहा है, मैं खुद ऊपर जा कर देखता हूँ।”
राजा पेड़ पर चढ़ा वहाँ सुन्दर सी कन्या को पाया। राजा ने कहा – डरो नहीं, तुम बहुत सुन्दर हो। मेरे साथ चलो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ। लड़की राजा के साथ चली गयी। राजा ने उसके साथ विवाह कर लिया। साल भर में ही उसने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उसकी अन्य रानियाँ, उसकी देवरानी, जेठानी आदि उसकी और उसके पुत्र की सुंदरता से जलने लगी थी।
सूरज जी का व्रत आया। लड़की रानी ने व्रत के लिए रोट बनाया। दूसरी रानियों ने राजा से कहा तुम्हारी नई रानी को रोट बनाना नहीं आता। उसका बनाया हुआ रोट खाओगे तो आपका पेट दुखेगा। रानी खायेगी तो कुंवर का पेट दुखेगा।
नई रानी ने यह बात सुन ली और उसने रोट को थाली के नीचे छुपा दिया और सूर्य भगवान से सहायता के लिए प्रार्थना करने लगी। राजा ने जब पूछा कि थाली के नीचे क्या है तो उसने कहा कि, मेरे गरीब पीहर से आया हुआ उपहार है। राजा ने थाली उठाई तो देखा की उसके नीचे सोने का चक्र था। राजा ने कहा – वाह , गरीब पीहर वालों का ऐसा उपहार ? नई रानी चुप रही।
एक दिन रानी खिड़की में खड़ी थी तभी उसे उसकी माँ दिखाई दी, जो दरिद्र अवस्था में छाजले बेच रही थी। उसने सोचा माँ को यहाँ बुला ले तो यहाँ आराम से रह लेगी। इतने नौकर चाकरों में वह भी कुछ काम कर लेगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा। उसने माँ को बुलवाया।
रानी की माँ आते ही वही बात दुहराने लगी, “धीय माई धीय दे, रोटा मायली कोर दे, म्हारो दे पण सारो दे” (हे लड़की, मेरी रोटी का टुकड़ा दे दिया, मेरी रोटी मुझे साबुत दे)। रानी ने सोचा कहीं सब को पता ना चल जाये की मैंने अपनी माँ को इस तरह महल में बुलाया है। मुसीबत हो सकती है। उसने माँ को चुपचाप एक कमरे में रहने को कहा। बाहर से ताला लगा दिया।
रानी की देवरानी, जेठानी व अन्य रानियाँ राजा से कहने लगी कि नई रानी का व्यवहार संदेह पैदा करता है। एक औरत महल में घुसी थी पर वह वापस नहीं निकली। छोटी रानी यह सुन लिया। वह सूर्य भगवान से इस विपत्ति से बचाने की प्रार्थना करने लगी। राजा ने वहाँ आकर उस कमरे की चाबी मांगी। राजा ने कमरा खोला तो वहाँ सोने की एक मूर्ति थी।
राजा ने पूछा यह मूर्ति कहाँ से आई है? रानी ने कहा – मेरे गरीब से पीहर का उपहार है। राजा ने कहा तुम्हारे गरीब पीहर से इतने कीमती उपहार आते हैं। मुझे तुम्हारा पीहर देखना है। हम वहाँ चलेंगे। रानी ने फिर सूरज भगवान मदद मांगी। सूरज भगवान ने कहा कि मैं सवा पहर की व्यवस्था तो कर दूँगा, लेकिन फिर मुझे नगरी में उजाला करने जाना होगा।
सूर्य भगवान ने जंगल में माया नगरी बसा दी। महल, झरोखे, बाग बगीचे, रिश्तेदार आदि सब माया से बना दिए। महल की रसोई में कई प्रकार के व्यंजन बन रहे थे। सबसे मिलकर और खा पीकर रानी ने राजा से वापस चलने को कहा। राजा ने कहा – जल्दी क्या है, थोड़ा आराम कर लें। रानी ने बड़ी मुश्किल से राजा को वापस चलने के लिए मना लिया और वे रवाना हो गए।
थोड़ी दूर जाने के बाद राजा को ध्यान आया कि उनकी कटार वहीं रह गई है। राजा ने सेवक को कटार लाने भेज दिया। सेवक वहाँ गया तो देखा कि वहाँ जंगल के सिवा कुछ भी नहीं था। कटार झाड़ी में पड़ी मिली। कटार लेकर सेवक आया और उसने यह सब राजा को बताया।
राजा को पहले ही शक था। उसने तलवार निकाल ली और गुस्से में आकर रानी से सच बताने को कहा। रानी ने सब कुछ सच सच कह डाला और सूरज भगवान की कृपा और मदद के बारे में भी बताया। यह सब सुनकर राजा बहुत खुश हुआ और रानी को सूरज रोट का व्रत अच्छे से करने को कहा। रानी का मान और बढ़ गया।
हे सूरज भगवान, जैसा सुख उस लड़की को दिया वैसा ही सुख यह कहानी कहने वाले, सुनने वाले, म्हारा सारा परिवार को भी प्राप्त हो।
बोलो सूरज भगवान की जय ….. !!!
इसके बाद गणेश जी की कहानी सुने।
गणेश जी की कहानी
गणेश जी की कहानी सभी प्रकार के व्रत में सुनी जाती है। कोई भी व्रत करने पर उस व्रत की कहानी के अलावा, गणेश जी की कहानी भी कही और सुनी जाती है। इससे व्रत का पूरा फल मिलता है। गणेश जी की कहानी इस प्रकार है –

एक बार गणेश जी एक लड़के का वेष धरकर नगर में घूमने निकले। उन्होंने अपने साथ में चुटकी भर चावल और चुल्लू भर दूध ले लिया। नगर में घूमते हुए जो मिलता, उसे खीर बनाने का आग्रह कर रहे थे। बोलते – “माई खीर बना दे ” लोग सुनकर हँसते।
बहुत समय तक घुमते रहे, मगर कोई भी खीर बनाने को तैयार नहीं हुआ। किसी ने ये भी समझाया की इतने से सामान से खीर नहीं बन सकती, पर गणेश जी को तो खीर बनवानी ही थी।
अंत में एक गरीब बूढ़ी अम्मा ने उन्हें कहा – बेटा चल मेरे साथ में तुझे खीर बनाकर खिलाऊंगी। गणेश जी उसके साथ चले गए।
बूढ़ी अम्मा ने उनसे चावल और दूध लेकर एक बर्तन में उबलने चढ़ा दिए। दूध में ऐसा उफान आया कि बर्तन छोटा पड़ने लगा। बूढ़ी अम्मा को बहुत आश्चर्य हुआ कुछ समझ नहीं आ रहा था। अम्मा ने घर का सबसे बड़ा बर्तन रखा। वो भी पूरा भर गया। खीर बढ़ती जा रही थी।उसकी खुशबू भी चारों तरफ फैल रही थी।
खीर की मीठी मीठी खुशबू के कारण अम्मा की बहु के मुँह में पानी आ गया, उसकी खीर खाने की तीव्र इच्छा होने लगी। उसने एक कटोरी में खीर निकली और दरवाजे के पीछे बैठ कर बोली – “ले गणेश तू भी खा, मै भी खाऊं” , और खीर खा ली। बूढ़ी अम्मा ने बाहर बैठे गणेश जी को आवाज लगाई। बेटा तेरी खीर तैयार है। आकर खा ले। गणेशजी बोले अम्मा तेरी बहु ने भोग लगा दिया, मेरा पेट तो भर गया। खीर तू गांव वालों को खिला दे।
बूढ़ी अम्मा ने गांव वालो को निमंत्रण देने गई। सब हंस रहे थे। अम्मा के पास तो खुद के खाने के लिए तो कुछ है नहीं। पता नहीं, गांव को कैसे खिलाएगी? पर फिर भी सब आये। बूढ़ी अम्मा ने सबको पेट भर खीर खिलाई। ऐसी स्वादिष्ट खीर उन्होंने आज तक नहीं खाई थी। सभी ने तृप्त होकर खीर खाई लेकिन फिर भी खीर ख़त्म नहीं हुई। भंडार भरा ही रहा।
हे गणेश जी महाराज !, जैसे खीर का भगोना भरा रहा; वैसे ही हमारे घर का भंडार भी सदा भरे रखना।
बोलो गणेश जी महाराज की…… जय !!
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Suraj Rot Ka Vrat की हार्दिक शुभकामनाएं !!
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(इस आलेख में दी गई Suraj Rot Vrat Ki Kahani की जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)